Sunday 7 September 2014

युवाओं में आत्महत्या की प्रवृत्ति चिंताजनक




चिंताजनक प्रवृत्ति    

  Mon, 13 Jan 2014

युवाओं में लगातार बढ़ रही आत्महत्या की प्रवृत्ति चिंताजनक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया में इस तरह की सर्वाधिक घटनाएं भारत में हो रही हैं। जहां तक कारण की बात है तो इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि गलाकाट प्रतिस्पर्धा के इस दौर में आगे निकलने की होड़ और किसी कारणवश इस होड़ में पिछड़ने के कारण मन-मस्तिष्क पर पड़ने वाला दबाव इसके लिए सबसे अधिक जिम्मेदार है। पंजाब भी इससे अछूता नहीं है और यहां भी यह प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है। इसका एक उदाहरण गत दिवस जालंधर में भी देखने को मिला, जहां महेंद्रू मोहल्ले में एक पढ़े-लिखे नौजवान ने जान दे दी। हालांकि यह हैरान करने वाला है, क्योंकि पंजाब के लिए यह कहा जाता है कि यहां के लोग जिंदादिल होते हैं और परिस्थितियां चाहे कितनी भी विकट हों, उनका हंसते हुए सामना करना अच्छी तरह जानते हैं। जालंधर के 28 वर्षीय युवक के बारे में यह कहा जा रहा है कि उसने सीए की परीक्षा दी थी और इंटरनेट पर आए परिणाम में कम अंक देखकर निराशा में डूब गया। उसके सुसाइड नोट से अंदाजा लगाया जा रहा है कि करियर को लेकर वह इस कदर दबाव में आया कि पंखे से लटककर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली। यह तो एक घटना है, स्थितियां किस कदर भयावह हो चुकी हैं इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि सरकारी सर्वे के अनुसार मात्र भारतीय परिप्रेक्ष्य में ही 2010 में हुई आत्महत्याएं वर्षभर की कुल मौतों का 3 प्रतिशत रही। 22 जून 2012 में एक अंग्रेजी अखबार में छपे लांसेट मेडिकल जरनल के सर्वे के अनुसार 15 से 29 साल की उम्र में आत्महत्याएं सबसे ज्यादा होती हैं, यानी युवाओं में यह आत्मघाती प्रवृत्ति सर्वाधिक है। देश-दुनिया के लिए तो यह चिंताजनक है ही, पंजाब को भी इससे सबक सीखने की जरूरत है कि आखिर हसदे-वसदे पंजाब, जिसकी जिंदादिली की पूरी दुनिया में मिसाल दी जाती है यहां यह रोग भला कैसे लग गया? परिजनों और नीतिनियंताओं को तो इसपर मंथन-मनन करना ही होगा, युवाओं को भी अपनी सोच को सकारात्मक बनाना होगा। उन्हें कांच के टुकड़े यानी दर्पण को देखने की नहीं, अपने मनदर्पण को देखने की जरूरत है ताकि जिंदगी सदा मुस्कुराती रहे।
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आत्महत्या की बढ़ती घटनाएं चिंतनीय 

  Mon, 24 Feb 2014

आत्महत्या की बढ़ती घटनाएं चिंतनीय हैं। नाराजगी, घरेलू कलह, सहनशक्ति का अभाव और भावनाओं में बहकर खुदकुशी जैसे कदम उठाना अब रोजाना की बात बन गई है। इसमें भी चिंताजनक बात यह है कि ऐसी प्रवृति कम उम्र के किशोरों में भी सामने आई है। सूचना तकनीक के इस युग में प्रतिस्पर्धा काफी बढ़ गई है। आगे निकलने की होड़ और अन्य कारणों से पिछड़ने की वजह से मन-मस्तिष्क पर पड़ने वाला दबाव भी आत्महत्या जैसे कारकों को जन्म दे रहा है। हिमाचल प्रदेश भी ऐसी घटनाओं से अछूता नहीं है और यहां पर यह प्रवृति लगातार बढ़ रही है। गत दिनों कुल्लू व ऊना में दो छात्रों ने खुदकुशी कर ली। हालांकि दोनों मामलों में कारणों का पता तो जांच के बाद ही चल पाएगा लेकिन इस तरह की घटनाएं समाज को झकझोर रही हैं। यह सही है कि प्रतिस्पर्धा के इस युग में हर व्यक्ति की कोशिश होती है कि वह किसी मुकाम तक पहुंचे लेकिन असफल रहने पर उनमें कुंठा इस कदर हावी हो जाती है कि वह आत्मघाती कदम उठाने से भी नहीं चूकता है। यह बात सभी को समझनी होगी कि आत्महत्या जैसा कदम उठाना किसी भी समस्या का हल नहीं है। असफलता के बाद ही सफलता मिलती है और रात के बाद ही सुबह आती है। अब परीक्षाओं का दौर शुरू होने वाला है। इन दिनों बच्चों पर पढ़ाई का बोझ काफी हो जाता है और कई बार वह तनाव में रहते हैं। ऐसे में परिजनों को चाहिए कि वे बच्चों को तनावमुक्त बनाने में उन्हें मानसिक रूप से तैयार करें। प्रतिस्पर्धा के इस युग में अभिभावकों की बच्चों के प्रति अपेक्षाएं बढ़ी हैं लेकिन उन्हें समझना होगा कि वे बच्चों पर किसी तरह का दबाव न बनाएं व उन्हें अपना भविष्य स्वयं चुनने दें। इसके साथ ही स्कूलों व कॉलेजों में बच्चों के लिए काउंसिलिंग भी की जानी चाहिए कि वह अपनी परीक्षाओं की तैयारी किस तरह करें। इसके लिए मनोचिकित्सकों की भी सहायता ली जानी चाहिए। बच्चों को भी चाहिए कि वे अपने ऊपर किसी तरह का दबाव महसूस न करें। परीक्षा की तैयारी के लिए ऐसी योजना बनाएं कि समय पर सिलेबस पूरा हो जाए। इसके लिए वे अपने शिक्षकों व परिजनों से भी समय-समय पर चर्चा करें। बच्चों को चाहिए कि वे किसी भी विपरीत परिस्थिति में हतोत्साहित न हों और खुद पर यकीन बनाए रखें तभी उन्हें मंजिल हासिल होगी।

तनाव को न पालें 
  Mon, 20 Jan 2014

समाज में बढ़ता मानसिक तनाव युवाओं पर इस कदर हावी होता जा रहा है कि वे इससे मुक्ति पाने के लिए मौत को गले लगाने से भी नहीं चूक रहे हैं। जरा सी नाराजगी, घरेलू कलह, सहनशक्ति का अभाव और भावनाओं में बहकर खुदकुशी जैसे कदम उठाना अब रोजाना की बात हो गई है। विगत दिवस शहर के बिक्रम चौक क्षेत्र में तवी पुल से एक युवती ने छलांग लगाकर अपनी जान दे दी। पिछले एक माह में जम्मू संभाग में आत्महत्या के करीब तीस मामले सामने आए हैं, जो चौकाने वाले हैं। इन आंकड़ों ने मनोचिकित्सकों को समाज में बढ़ रहे तनाव से निपटने के उपाय ढूंढने को मजबूर कर दिया है। प्रतिस्पर्धा के इस युग में हर व्यक्तिकी कोशिश होती है कि वह किसी मुकाम तक पहुंचे। असफल रहने पर उनमें कुंठा हावी हो जाती है। कई मामलों में बेरोजगारी, गरीबी व घरेलू कलह भी एक कारण होता है लेकिन इन सबसे छुटकारा पाने के लिए आत्महत्या जैसा कदम उठाना कोई हल नहीं है। परेशानियां और दिक्कतों का नाम ही जिंदगी है। रात के बाद उजियारा यही जिंदगी का सच है। समाज को तनाव मुक्तबनाने के लिए माता-पिता का यह दायित्व बनता है कि बच्चों को उतना ही स्नेह दें जिससे वह बिगड़ें नहीं। इसके अलावा बच्चों की संगत पर भी विशेष ध्यान रखने की जरूरत है। कई बार अपेक्षाओं पर खरा न उतरने पर छात्र आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते हैं। प्रतिस्पर्धा के इस युग में माता-पिता की बच्चों के प्रति अपेक्षाएं बढ़ी हैं, जो गलत है। माता-पिता को भी समझना होगा और उन पर किसी प्रकार का मानसिक दबाव बनाने से बेहतर होगा कि बच्चे को अपना भविष्य स्वयं चुनने दें। यह खुशी की बात है कि पिछले कुछ वर्षो से विद्यार्थियों की सोच में काफी बदलाव आया है और अब वह केवल डॉक्टर व इंजीनियर ही नहीं बनना चाहते बल्कि उनका लक्ष्य इससे भी काफी आगे है। किसी भी लक्ष्य को हासिल करने के लिए उम्र कभी आड़े नहीं आती। ऐसे में युवा जिंदगी में असफल भी रहते हैं तो उनमें हीनभावना नहीं आनी चाहिए। सतत् प्रयासों से ही कामयाबी आपके कदम चूमती है। अभिभावकों को भी बच्चों की मानसिक संवेदनाओं को समझना होगा क्योंकि मौजूदा वक्तमें बच्चे काफी संजीदा होते हैं।
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जिंदगी का मोल समझें

Sun, 05 Oct 2014

आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं से जाहिर होता है कि युवाओं पर तनाव किस तरह हावी हो रहा है। दुर्भाग्य की बात यह है कि लोग तनाव से खुद को उबार नहीं पाते हैं और वे मौत को गले लगा लेते हैं। बात अगर जम्मू और उसके आसपास की करें तो पिछले तीन दिन में एक किशोरी सहित चार लोगों ने जिंदगी को ठुकराकर आत्महत्या कर ली। विडंबना यह है कि भागदौड़ की जिंदगी में लोग तनाव को बेवजह पाल रहे हैं। कई युवा जीवन में घटित ऐसे वाक्यों को अपने दिलों दिमाग पर इस कदर हावी कर लेते हैं जिससे वे अपना ध्यान दूसरी ओर नहीं लगा पाते हैं, जो कई बार उनके जीवन के लिए घातक साबित हो रहा है। जरा सी नाराजगी, घरेलू कलह, सहनशक्ति का अभाव और भावनाओं में बहकर खुदकुशी जैसे कदम उठाना अब रोजाना की बात बन गई है। प्रतिस्पर्धा के इस युग में बच्चों पर पढ़ाई का बोझ और ऊपर से माता-पिता का दबाव भी कई बार भारी पड़ता है। इसमें कोई शक नहीं कि हर माता-पिता यह चाहते हैं कि उनके बच्चे किसी मुकाम पर पहुंचें, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि बच्चे पर बेवजह दबाव बनाया जाए। आजकल के युवा काफी समझदार और भविष्य को लेकर काफी फोकस हैं। इसलिए युवाओं को अपना भविष्य तय करने के लिए अभिव्यक्ति की आजादी होनी चाहिए कि वह किस क्षेत्र में जाना चाहते हैं। तनाव के कई कारण हैं जिनमें बेरोजगारी, गरीबी व घरेलू कलह भी एक कारण होता है। सफल इंसान वही होता है जो मुश्किल और जटिल हालात में भी स्थिति का सामना कर मुसीबतों का समाधान ढूंढे। जो व्यक्ति हालात से लड़ना सीख जाएगा वह जिंदगी में कभी भी विफल नहीं रहता। रात के बाद उजाला यही जिंदगी का सच है। माता-पिता का यह दायित्व भी बनता है कि बच्चों को उतना ही स्नेह दें, जिसमें वह बिगड़ें नहीं। इसके अलावा बच्चों की संगत पर भी विशेष ध्यान रखने की जरूरत है। किसी भी लक्ष्य को हासिल करने के लिए उम्र कभी भी आड़े नहीं आती। अभिभावकों को बच्चों की मानसिक संवेदनाओं को समझना होगा।


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