Sunday 7 September 2014

बुजुर्ग माता-पिता की उपेक्षा




  • 50 प्रतिशत से अधिक बुजुर्ग 

  • अपनी संतानों से दु:खी 


  2014-01-30

प्राचीन काल में माता-पिता के एक ही आदेश पर संतानें सब कुछ करने को तैयार रहती थीं परंतु आज जमाना बदल गया है। अपनी गृहस्थी बन जाने के बाद कलियुगी संतानें अपने माता-पिता की ओर से आंखें फेर लेती हैं। उनका एकमात्र उद्देश्य किसी न किसी तरह उनकी सम्पत्ति पर कब्जा करना ही रह जाता है।  हाल ही में दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा करवाए गए एक सर्वे में दिल्ली के वरिष्ठ नागरिकों में से 50 प्रतिशत का कहना है कि अपनी संतानों द्वारा अनादर करने पर वे उन्हें अदालत में घसीटने के विषय में सोचते हैं परंतु इसके बावजूद वे अपनी समस्याएं परिवार के भीतर ही सुलझाने को अधिमान देते हैं।  सर्वे में शामिल 86 प्रतिशत वरिष्ठ नागरिकों ने कहा कि पुलिस और न्यायपालिका की असंवेदनशीलता के कारण उनके लिए दोनों तक पहुंचना मुश्किल है। 90 प्रतिशत बुजुर्गों के अनुसार उन्हें ‘माता-पिता के कल्याण और वरिष्ठ नागरिक कानून’ के अंतर्गत प्रदत्त सुविधाओं का कोई लाभ नहीं मिला।  75 प्रतिशत वरिष्ठ नागरिकों का कहना है कि सामाजिक ताने-बाने में बदलाव, पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव और जीवन के प्रति व्यक्तिवादी व पदार्थवादी दृष्टिकोण के चलते बच्चे बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल नहीं करते।  इसी कारण 92.4 प्रतिशत वरिष्ठ नागरिकों का मानना है कि बुजुर्ग माता-पिता की उपेक्षा व अनादर करने वाले बच्चों के लिए कठोर दंड की व्यवस्था होनी चाहिए।  उक्त सर्वे जहां माता-पिता के प्रति संतानों की संवेदनहीनता को दर्शाता है, वहीं बुजुर्ग माता-पिता की विशाल हृदयता को भी प्रदर्शित करता है कि बच्चों द्वारा अपमानित व उत्पीड़ित किए जाने के बावजूद वे पुलिस या अदालत में उनकी शिकायत नहीं करना चाहते तथा अपनी समस्याएं परिवार के भीतर ही सुलझाने को अधिमान देते हैं। 
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